Harnessing Energy of Senior Citizens

Age Power


Fin Talk

Senior Lady working on handicraft item

Our Vision

To harness the energy of senior citizens in nation building

We have so many people retiring every day – some by choice, some by organization rules where they were serving, some forced by circumstances …. And still many of them have so much of energy and intentions to work further, if given an opportunity.

With the experience that these senior citizens have one must consider ways to harness the energy of these people for the welfare of needy, for serving the nation.

We can do so much, even without any government help, to help the community in which we live in. There are n numbers of voluntary organizations (NGOs as commonly called) – and many of them are doing really good work – they are always in the look out for volunteers. One can join them, after properly assessing their work and their need. Or else one can do it individually or take a lead to form a group to take this further.

The whole idea is not to stay idle, or else besides people forget you or neglect you, it would take its toll on your health and the process to end of life will be difficult.


Senior News


Testimonials

Swami -Girishanandji Maharaj
Swami Girishanand Saraswati
Swami Girishanand Saraswatiji Maharaj

Swami -Girishanandji Maharajजय श्री राम विजय मारू जी। आपका यह प्रयास वरिष्ठ नागरिको की ऊर्जा का सदुपयोग अत्यंत प्रशंसनीय हैं और शास्त्रीय हैं। हमारे सनातन धर्म में ब्रह्मचर्य, ग्रहस्त, वानप्रस्थ और सन्यास चार आश्रमो की व्यवस्था हैं। भगवान के आदेश के अनुसार 50 वर्ष के बाद ही व्यक्ति को समाज सेवा और साधना में लग जाना चाहिए। ठीक है, फिर भी गोवर्नमेंट के अनुसार लोग 60 वर्ष में रिटायर होते हैं। लेकिन आज के समय में अधिकांश लोग उसके बाद भी स्वस्थ एवं कार्य करने लायक होते हैं। उनकी ऊर्जा का सदुपयोग कर्म की दृष्टि से सेवा में हो, मन की द्रष्टी से भक्ति में हो और बुद्धि की दृष्टि से सत्य के साक्षात्कार के लिए हो। इन तीनों कार्य का विधान हमारे शास्त्र में है और वही कार्य आप करवा रहे हैं। अगर वेदांत चिंतन समझ में नहीं आता है तो भगवान की भक्ति करें और भक्ति में भी मन नहीं लगता है तो निस्वार्थ भाव से समाज की, देश की, राष्ट्र की सेवा करें। यही क्रम है ईश्वर की अनुभूति का। निस्वार्थ सेवा ही साधना होती है, ऐसा हमारे पू्ज्य रोटी राम बाबा कहते थे। तो जो लोग 60 वर्ष के बाद भी अपनी उर्जा को राष्ट्र सेवा के लिए, समाज सेवा के लिए अगर निस्वार्थ भाव से उपयोग करते हैं तो उनको ईश्वर की अनुभूति के लिए अलग से साधना की भी आवश्यकता नहीं है। उनके निस्वार्थ सेवा ही साधना बन जाएगी। सेवा में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। जैसा कि हनुमान जी के जीवन से हम लोग सीखते हैं। सेवा कार्य हमको अगर मिला है, शरीर स्वस्थ है, अभिमान न करें कि हम ही सेवा कर रहे हैं। ईश्वर हमसे करवा रहा है यह सोच रखें और जहां भी सेवा में बाधा पड़े वहां चिंता ना कर के चिंतन करें। यह हनुमान जी के जीवन से हमको सीखने को मिलता है। इसीलिए वह सेवा कार्य में हमेशा सफल रहते थे। आपका कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है। बहुत-बहुत आशीर्वाद, साधुवाद। जय श्री राम। जय मां नर्मदे।

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श्याम जी गुप्त प्रणेता, एकल अभियान
श्याम जी गुप्त, प्रणेता, एकल अभियान
श्याम जी गुप्त, प्रणेता, एकल अभियान

आदरणीय विजय भैया!

मैं मंत्र मुग्ध हूँ कि आपने वर्तमान काल की सबसे बड़ी आवश्यकता की मुहिम प्रारम्भ की है। एकल में तो वानप्रस्थी योजना का महत्व गत अनेक वर्षों से चर्चा में है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी मुहिम से वह कल्पना साकार होगी। यदि कोई भी सेवानिवृत पुरुष या महिला दिन में 3-4 घंटे का समय दे सकते हैं तो उनका योगदान इतिहास याद करेगा। अपने केंद्र पर ही कार्यालय के काम की देखभाल से एकल अभियान में एक चमक आ सकती है। और बाकी तो सब काम फ़ोन द्वारा ही अपेक्षित है।

मैं राम जी के चरणों में आपकी मुहिम की सफलता की प्रार्थना कर रहा हूँ।

Didi Ma Sadhvi Ritambhara
दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा, वात्सल्य ग्राम, वृंदावन
दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा, वात्सल्य ग्राम, वृंदावन

विजय जी आपको इस पवित्र कार्य के लिए बहुत-बहुत बधाई देती हूं। हमारे प्राचीन भारत में भी जीवन के उत्तरार्ध जोकि वानप्रस्थाश्रम कहलाता है जब व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता है। उसके लिए एक मार्ग होता है अपनी उर्जा के सदुपयोग के साथ साथ ,”आत्म अनुसंधान” के लिए साधना रत होना। शरीर की ऊर्जा सदैव समाज के लिए समर्पित होती है और चित् चेतना “परम सत्य” की खोज में समर्पित होती है और मन “श्री हरि” के चरणों में समर्पित होता है। इसको ऐसे कह सकते हैं:

जग की सेवा खोज अपनी प्रेम हरि से कीजिए जिंदगी का राज है यह जानकर जी लीजिए साधना की राह पर साधन किसी का है दिया मैं नहीं मेरा नहीं ये तन किसी का है दिया जो भी अपने पास है वह धन किसी का है दिया।

देह की मृत्यु के आने से पहले व्यक्ति के जीवन में सन्यास स्वयं ही घटित हो जाता है। आपने उसी दृष्टि को अपने इस कार्य के माध्यम से स्थापित किया है। आपने बिल्कुल सही कहा बिना उद्देश्यों को समर्पित हुई उर्जा कुंठित ही होती है और वैसे भी बिना व्यक्तिगत लाभ के समाज के कार्य में लगना समाज की ही जिम्मेदारी होती है। राष्ट्र का कार्य राज्य क्यों करें राष्ट्र का कार्य राष्ट्र के निवासी ही करें। यह बहुत सुंदर पहल है आपको बहुत-बहुत साधुवाद।